तो मुस्कुराती हूँ
तो मुस्कुराती हूँ
किसी रोज उस रास्ते से गुजर जाती हूँ
तो मुस्कुराती हूँ....
मेरे ख्वाब मेरी आरजुएँ मेरी
मोहब्बत महज़ फ़रेब लगता है
अब तो आईना भी देख लूँ
तो मुस्कुराती हूँ
ये सोचकर कि ऐ शहर तेरे लोगों ने
मुझें इतना बे-दिल बना दिया
की अब जहर भी देख लूँ
तो मुस्कुराती हूँ....
उस नदी से मुझें कोई शिकवा नहीं
जो किनारे खिले फूल को न सींच सके
गुरुर समुंदर से मिलाप का करते उसे देखती हूँ
तो मुस्कुराती हूँ....
ख़ामोशी में जीने का अदब अपना लिया है मैंने...
ख़ुद को बंद तिजोरी में समा लिया है मैंने
अब श्मशान से भी गुजरती हूँ
तो मुस्कुराती हूँ।