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Shweta Sharma

Tragedy

4.5  

Shweta Sharma

Tragedy

यह क्या यहाँ है हो रहा ?

यह क्या यहाँ है हो रहा ?

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छल कपट से पूर्ण जो व्यक्तित्व वह पनप रहा,

परिश्रमी के स्वप्न अधूरे, वह  प्रति पल है पिछड़ रहा,

असत्य के कुचक्र में है सत्य अभिमन्यु बना !

विडम्बना है वक्त की , विपरीत दिक् में चल रहा ।।

यह क्या यहाँ है हो रहा ?

 

मानवता का काल स्वयं अब मानव ही है बन रहा,

ले प्रगति की आड़ लोभ की प्राचीरों में जकड़ रहा ,

करता अट्टहास अधर्म, अदृश्य हुए आदर्श सभी!

आरम्भ अंत का अपने हाथ कर नींद चैन की सो रहा ॥

यह क्या यहाँ है हो रहा ?


मृगतृष्णा सी बनी शांति प्रेम कहीं ना दिख रहा,

रिश्ते तो है मात्र भ्रांति अपनापन कहीं छूट रहा,

मात पिता अब केवल धन है वही ईश है बन बैठा !

संस्कार सस्ते हो गए और शृंगार महंगा हो रहा॥

यह क्या यहाँ है हो रहा ?


अनजाना भय घेरे सबको विश्वासपात्र ना कोई रहा,

अविवेक का हाथ थाम क्रोध चरम पर जा रहा, 

दिशाहीन हो किस माया के भंवरजाल में है अटका!

आडम्बर है बस और अपनत्व ओझल हो रहा!

यह क्या यहाँ है हो रहा ? यह क्या यहाँ है हो रहा?


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