हाँ मैं स्त्री हूं !
हाँ मैं स्त्री हूं !
माथे पे बिंदिया आँखों में काजल
और हाथों में है मेरे कंगना ।
मेरे पैरों की पायल से
खनकता है घर का अँगना।
मैं सजती हूँ सँवरती हूँ
देख कर रोज़ आइना
और ख़ुशी से चाहती हूँ मैं
तारीफ़ों के रंग में रंगना ।। हाँ मैं स्त्री हूँ ….
मैं ममता की मूरत हूँ
हृदय मैं है मेरे करुणा ।
सहिष्णुता मेरी सागर सम
आए दुःख में भी हँसना ।
त्याग में है मेरे ईमान
नहीं आता मुझको छलना।
है जल सी शीतलता मुझमें
जानूँ में अग्नि में भी तपना ।। हाँ में स्त्री हूँ ….
पर मुझे कमज़ोर और नाज़ुक
कभी भूले भी समझो ना ।
मैं शक्ति का जीवंत रूप
आत्मबल यूँ कम आँको ना ।
मैं प्रकृति का जीवंत रूप
गुण मेरा, हर हाल सृजन करना .
कोमल कली नहीं , हूँ काली मैं
जानूँ पाहन को कंचन करना । हाँ मैं स्त्री हूँ …
अभिलाषाएँ मेरी भी है
चाहूँ मैं भी खुल कर उड़ना ।
है मेरा भी अस्तित्व अहम्
ना कभी उसे चोटिल करना ।
नग सा अडिग साहस मुझमें
संघर्षों से ना सीखा डरना ।
नभ सा अनंत सामर्थ्य मुझमें
जानूँ हर स्वप्न पूर्ण करना । हाँ में स्त्री हूँ .