"जगत-भीड़"
"जगत-भीड़"
जगत-भीड़ में खो गये,लाख चेहरे हैं
कैसे ढूंढूं,उजाले में भी अब अंधेरे हैं
सब आज दिखावे की ओर मर रहे हैं
सामने दिखते सच मे झूठ के पहरे हैं
किसे इल्जाम दूं,अपनी छाया में भी,
दिख रहे,पराये लाख बनावटी चेहरे हैं
सच्ची हंसी आज हमारी छूट ही गई हैं,
बनावटी हंसी के सब बांधे हुए सहरे हैं
सब जा रहे,भेड़ चाल भीड़ की ओर,
शेरो के आज कम हो गये बहुत चेहरे हैं
बाते करते दुनिया मे वो ही बड़ी-बड़ी,
जो राजनेता अभिनय मुखोटे पहने हैं
शेरों की खाल में छिपे गीदड़ सुनहरे हैं
जिसे देखो वो ही दे रहा,जख्म गहरे हैं
अब दरिया से ज्यादा मनु स्वार्थ गहरे हैं
जगह-भीड़ में खो गये,लाख चेहरे हैं
साखी खुद को पहचान कोई न तेरे हैं
बाला से लगा,प्रीत खत्म करेंगे फेरे हैं
यहां तो हर रिश्ते में उलझनों के घेरे हैं
बाला से रख रिश्ता,पारस पत्थर तेरे हैं।
