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Kanchan Jharkhande

Tragedy

4  

Kanchan Jharkhande

Tragedy

एक तू कहाँ नादानी में लगी है "कंचन"

एक तू कहाँ नादानी में लगी है "कंचन"

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उस बगीचे को देखना मुनासिब था 

उसके भीतर जाना मना था 

उसमें पानी सींचना मुनासिब था फूल उठाना मना था

कुछ ऐसा ही लहजा था उस शक्श का

इश्क करना मुनासिब था निभाना मना था 


हालांकि उसने कभी कुछ कहा नहीं मुझसे 

उसके साथ कॉल मुनासिब था 

बस उसके घर आना-जाना मना था 

पतझड़ था हवा तेज़ चल रही थी 

सभ्यता की आड़ में चालाकी उसकी तेज़ चल रही थी

मुझें खबर थी सारे जमाने की ओर

उसके घर में मेरी अलग एक खबर चल रही थी 


मैं तो बेख़बर थी उससे, 

ओर उसकी चालाकियां जरूरत से ज्यादा तेज चल रही थी।

वो शख्स कुछ इस क़दर आज़मा रहा था मुझें

मैं मोहब्बत में ओर वो दौलत दिखा रहा था मुझें

मैंने उसे खुदा बताया था यारों के सामने

ओर वो झूठी कहानी बना रहा था मुझें

उसके दोस्तों में न जाने मैं क्या थी मगर

एक अरसे से कोई सतरंज बिछाये जा रहा था मुझें 


कोई तकलीफ थी यार बता देते मुझें 

कोई गुनाह था सो यार सजा देते मुझें

मैंने कौनसी तेरी सल्तनत हासिल करनी थी यार 

तेरे इक जिक्र पर पूरा हाल सुना देते थे तुझे

बारिश का मौसम हवाओं का रुख बदल रही है। 

सड़कें पुरानी अपना लुक बदल रही है 


ओर एक तू कहाँ नादानी में लगी है "कंचन"

इंसान बदल रहें हैं, देख पूरी कहानी बदल रही है।


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