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मिली साहा

Tragedy

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मिली साहा

Tragedy

मीठा ज़हर

मीठा ज़हर

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आखिर किस पर करें भरोसा हम

अपने ही यहांँ अपनों को मीठा ज़हर पिलाते हैं

दिखावे के लिए बस करते हैं प्यार 

और पीठ पीछे छुरा लेकर चलते हैं‌।


ऐसे छुपा लेते हैं अपनी पहचान को 

चेहरे पर लगाकर हजारों चेहरे

कि जीवन भर खाते रहते धोखा 

फिर भी हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं।


मिश्री घोलकर ऐसी करते बातें 

कि खुद विश्वास भी धोखा खा जाए

कौन अपना यहांँ और कौन है पराया 

भेद करना भी मुश्किल हो जाए।


सुख में तो बन जाते हैं अपने से 

और दुख की घड़ी पल में हाथ झटक देते हैं

मगरमच्छ के आंँसू बहाकर ऐसे लोग 

दुबारा हमारी ज़िन्दगी में घुस जाते हैं।


समझ नहीं पाते हम उनके बिछाए जाल को 

और आसानी से उसमें फंस जाते हैं

वो घुंट-घुंट पिलाते हमें मीठा ज़हर 

और हम आंँख मूंदकर बस पीते जाते हैं।


शातिर दिमाग इनका पल पल 

हमारी ज़िन्दगी की हर ख़बर रखता है

आभास नहीं होता इस बात का 

वो कब सबकुछ हमारा छीन ले जाता है।


फंस जाते हैं अक्सर लोग यहांँ 

ज़हरीले सांपों का शिकार हो जाते हैं

इनके चंगुल में फंस कर अक्सर हम

दिल से जुड़े रिश्तों को भी पराया कर देते हैं।


अपनेपन का मुखौटा पहनकर

हर पल यहांँ भावनाओं का कत्ल होता है

क्योंकि प्यार समझता नहीं कोई 

बस दिखावे का ही तो हर तरफ स्वागत होता है।


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