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Kanchan Jharkhande

Tragedy

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Kanchan Jharkhande

Tragedy

अचानक पतझड़ का आ जाना by KJ

अचानक पतझड़ का आ जाना by KJ

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कैसे बयां करूँ कितना कठिन होता होगा

पत्ते का पेड़ से अलग हो जाना, 

जैसे मानो की हरियाली में

अचानक पतझड़ का आ जाना,


तुम तो इतने अनजान बने फिरते हो

जैसे कुछ पता ही नहीं,

जो एक अरसे से मेरी चीखें न समझ सका

उसे अपनी ख़ामोशी भला क्या समझाना 


देख मेरा तुझसे मसला अब कुछ नहीं है,

ये बिजली तो ख़ामोखा कड़क रही है।

कितना अंधा हो गया हूँ मैं कि

मुझें ख़ुद्दारी उसकी नज़र नहीं आ रही,


ये कैसा शकख्स जिसके ख़ातिर

बादलों से बग़ावत कर रहा हूँ मैं.... 

शाम ढल रही है सुबह को सूरज फिर आना है,

उन्हें भूल रहे हैं हम क़ाबिले तारीफ़ बहाना है।

अजीब सी जिद है इस नदी की,

के समुंदर में सिमटना भी है और

उसी समुंदर से दूर भी जाना है।


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