जिनके पास नहीं हों आँसू
जिनके पास नहीं हों आँसू
जिनके पास नहीं हों आँसू,
मेरी आँखों से ले जाओ,
किन्तु तभी आना घट लेकर
जब पनघट को खाली पाओ।
भीड़ यहाँ कब से बैठी है,
अपनी लम्बी पंक्ति लगाये,
बंजर नयन स्वप्न से वंचित,
क्षद्म सुखों से ठगे ठगाये,
सूखा पीड़ित तृषित दृगों को,
मेरी बूँदों से सरसाओ।
इन्हें न समझो आँसू, मेरे,
आशाओं के ये झरने हैं,
रेगिस्तानी कूप हुये जो,
इन लघु झरनों से भरने हैं,
यों न हार मानो जीवन से,
खुल कर आँसू कभी न बहाओ।
आँसू देकर मैं तुम में नव,
सजल सरस श्रावण भर दूंगा,
जीर्ण -शीर्ण घायल तन मन के,
गहरे सभी घाव हर लूँगा,
बाँध नयन घट अपना,मेरे,
नयन सिंधु में आज डुबाओ।
आँसू सूख न पायें,केवल,
इतनी सीमा रखो दुखों की,
बह न पड़ें अनवांछित भी वे,
यह मर्यादा रखो सुखों की,
दुख हों चाहे सुख हों, अपनी
आँखों से न व्यर्थ छलकाओ।