अभीत हूँ मैं
अभीत हूँ मैं
अभीत हूँ मैं,
अभीत है मेरा मन
इस ज़िन्दगी की कशमकश में,
उस पुरानी गलियों में,
पुराने खयालों में
कहीं टहल रहा है ये मन
कभी लगता है,
आग की गर्मी से भी
अधिक ऊर्जा है इस मन में,
पर डर ये भी लगता है
कहीं यही आग
जला ही ना दे खुद को
मनुज ने आग को खोजा था
आग तो पहले भी थी
पर खुद के अंदर की
आग वो खोज ले
तो उस अंतराग्नी की
बात ही कुछ और होगी।
अंतराग्नी से अंतरात्मा
का ये सफर
बहुत ही संघर्ष पूर्ण है
अपनी खुद की आग से बचना है
दूसरों की आग से भी बचना है
उस चिंगारियों से भी बचना है
जो समाज में पनपती है
बहुत जटिल कार्य है,
पर करना तो है।
खुद को खोजने के लिए।
