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rajesh asutkar

Abstract

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rajesh asutkar

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यादों का बादल

यादों का बादल

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शाम के रूठे हुए आसमाने पूछा

क्यों बैठे हो ऐसे मुंह फुलाकर

किसीकी यादों में खोए हो

या गिन रहे हो तारे किसी के इंतजार में


इंतजार तो में भी करता हूं

उस सुबह का

जिस दिन वो मुझे मिले

और अपनी कांति से 


मेरे भीतर के अंधकार को मिटा दे

पर कमबख्त ये रात अजीब सी है

उसके ना होने को भुला देती है

और अपने एहसास को जगा देती है

 

हमने शामसे कहा हम तो

उसकी यादों के बादल में 

सवार होकर निकलते है उस सफर में

जिसपे बस हम है और उसकी यादें

कुछ कोरे पन्ने और वही नीली स्याही


ये सफर चलता रहता है

जबतक बारिश ना हो जाए

जब बारिश हो जाती है


मिट जाती है वो नीली स्याही

जो हमने कोरे कागजों पर उतारी थी

और रह जाता है बस

वो काला बादल 

गरजता हुआ।


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