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rajesh asutkar

Abstract

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rajesh asutkar

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मेरी पुकार

मेरी पुकार

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पुकारता हूँ मैं

उन मेरे खोए हुए खयालों को,

आरज़ूओं को,

गुम हो चुकी तमन्नाओं को


पुकारता हूँ में

उन मेरे जज़्बातों को,

कहीं धूल में पड़ी हुईं

कविताओं को...

की उठो, आओ

मेरे संग चलो

गहरे समंदर की सैर करने

फिर से तैयार हो जाओ

कश्ती तैयार है।


कहाँ निकल जाते हो

सैर पे

अकेले ही

कभी मुझे पूछा करो

सोया हूँ तो जगाया भी करो


जिंदगी धुँधली सी है

तुम्हारे बिना

किनारा ओझल सा है

तुम्हारे बिना

आओ, अब रास्ता दिखाओ

मेरे संग चलो

गहरे समंदर की सैर करने।



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