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Mukesh Kumar Goel

Abstract

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Mukesh Kumar Goel

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कल जो कभी नहीं आता !

कल जो कभी नहीं आता !

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कल !

जो कभी नहीं आता।

कल !

जिसके इंतज़ार में

हमारा जीवन

निकल जाता।


कल !

जो कभी नहीं आता।

उस बिन देखे

कल को संवारने में

हमारा,

आज भी बीत जाता।


कल !

जो कभी नहीं आता।

लगे रहते हैं हम सभी

बिन सोचे, बिन समझे,

छोड़ के इस पल को

सोचे हम आने वाले कल को,


जो,

न कभी आया है

न कभी आएगा।


हमारा जीवन,

इस इंतज़ार में,

बीत जाएगा।

जिओ जो पल है,

यही आज औ कल है,


न बरबाद करो इस पल को

आज ही मना लो बिन देखे कल को।


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