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शशि कांत श्रीवास्तव

Abstract

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शशि कांत श्रीवास्तव

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" उड़ान "

" उड़ान "

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उन्मुक्त स्वच्छ आकाश में 

मेघा करते हैं विचरण सदा 

श्वेत और श्याम रंगों में 

स्वछंद और मदमस्त 

हवाओं संग पंछी भरते हैं

 

उड़ान उड़ने को 

हो उन्मुक्त गगन में 

दूर कहीं 

तिनका और घास को बुनकर 

एक बनाती नीड़ सघन 


जिसे घोंसला कहते हैं जो 

होता है, उनका सुखधाम सघन 

जिसमें रहते उनके बच्चे

सदा झांकते उनमें से और

 

देखते नील गगन को 

सदा सोचते 

कब होंगे हम आजाद नीड़ से 

और करेंगे विचरण नील गगन में।


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