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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

Abstract

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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

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बेनूर ज़िंदगी

बेनूर ज़िंदगी

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कब चारदीवारी मे कैद हो गई ज़िंदगी

हमको ये एहसास तक न हुआ


तितली सी उड़ती थीं उमंगें कभी

न जाने कहाँ गुम हो गईं


अब तो न सावन सूखे न भादों हरे

न कोई गीत न मलहार


मचलती थीं जो हर बात पर

वो शख्सियत न जाने कहाँ खो गई


न कोई ख्वाहिश न खलिश

न जाने ज़िंदगी कब बेनूर हो गई।


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