मूक दर्शक
मूक दर्शक
अभी तो छोटी हूँ पर
मेरा बचपन कहाँ गया।
माँ की लोरी
पिता का साया
सब उनके साथ गया।
अब मैं एक बेटी नही
बड़ी बहन बनकर
अपना फर्ज निभाऊंगी।
जो माँ से सिखाया
पिता ने समझाया
वो कर्तव्य अब मेरा है
बनकर परिवार की ढाल
पाल पोस कर भाई को
नेक इंसान बनाना है।
अब पिता की जागीर
सब जिम्मेदारी मेरी,
हाथ गाड़ी मेरी है।
सगा संबंधी सब है
लेकिन अब मेरे लिए
सिर्फ मूक दर्शक है।
अपने वचन को पार लगाउंगी।
हाँ अब मैं एक बहन बनकर
अपने भाई को पालूंगी।
दिन-रात मेहनत कर
ये हाथ गाड़ी खिंचकर
अपना भाग्य लिखूंगी।
तुम सब देख लेना
कैसे एक बच्ची
जलती मशाल बनती है।
मेरी ओर आने वाले
सभी रोड़े मेरी
पहचान बन जायँगे।
