STORYMIRROR

Dr Reshma Bansode

Others

4  

Dr Reshma Bansode

Others

ख़्वाब

ख़्वाब

1 min
331


एक कांच का ख़्वाब था,

अलमारी में कैद कर रखा था।

बहुत खूबसूरत सपना था,

अपने ही नजरो से दूर रखा था।

डर लगता रहता उस ख़्वाब का,

उसके दिल के करीब होने का।

बरसो तक छुपाए रखा,

देखने की मुझ में न हिम्मत थी,

न उसे झेलने की ताकत।

और फिर एक दिन,

सूरज नया उजाला ले आया।

ख़्वाब को उसने दिन दिखलाया,

सूरज के उजाले की चमक में,

ख़्वाब ने पहला कदम आगे बढ़ाया।

बस गया फिर वो आंखो मे मेरी,

बरसो बाद लौटकर आया वो दुनिया में मेरी।

कांच का ख़्वाब और सूरज की रोशनी,

टूटकर चुभ गया फिर आंखो में मेरी।

टूटकर चुभ गया फिर आंखो में मेरी।


Rate this content
Log in