Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Drama

4.8  

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Drama

"झूठ" जब बोल उठा

"झूठ" जब बोल उठा

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इससे उससे सुनता हूं

उसकी इसकी करता हूं


मेरा कोई ज़मीर नहीं

मैं फरेब पर मरता हूं


कौन गवाही कैसे दे

चंद सिक्कों में भी बिकता हूं


ठहराव न मुझमें ढूंढो

वादों से मैं पलटता हूं


सच जब जंग लड़ता है

दूर से मैं मुस्कुराता हूं


मेरा सलीका फितरत है

फिर भी एतबार कराता हूं


किसने कहा मेरे पांव नहीं

मैं सीना तानकर चलता हूं


हुनर मेरा शातिराना है

झूठा भरोसा दिलवाता हूं


खुद का मेरा कोई किरदार नहीं

जैसे चलाते हो, चलता हूं......


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