STORYMIRROR

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Drama

4  

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Drama

"झूठ" जब बोला

"झूठ" जब बोला

1 min
313

इससे उससे सुनता हूं

उसकी इसकी करता हूं


मेरा कोई ज़मीर नहीं

मैं फरेब पर मरता हूं


कौन गवाही कैसे दे

सिक्कों में मैं बिकता हूं


ठहराव न मुझमें ढूंढो

वादों से मैं पलटता हूं


सच जब जंग लड़ता है

दूर से मैं मुस्कुराता हूं


मेरा सलीका फितरत है

फिर भी एतबार कराता हूं


किसने कहा मेरे पांव नहीं

मैं सीना तानकर चलता हूं


हुनर मेरा शातिराना है

झूठा भरोसा दिलवाता हूं


खुद का मेरा कोई किरदार नहीं

जैसे चलाते हो, चलता हूं......


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract