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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

"खुद में सुधार"

"खुद में सुधार"

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जो देखते है, नित नई पराई नार

उनके जूते पड़ते नित ही दो-चार

जो जूते खाकर कहे, ये है, उपहार

वो अपने घर में पाता, नित दुत्कार


जो मन पर रखता है, व्यर्थ भार

वो डूब जाता है, बिना जलधार

जो आदमी होता है, समझदार

मिटाता रहता है, भीतरी विकार


जो सहते है, नयनों के अत्याचार

गलत दृश्यों से करते है, एतबार

उन आंखों से बहता, लहू बार-बार

छद्म प्रकाशता में पाते, अंधकार


जो देखते है, नित नई पराई नार

उनका होता रहता, जूतों से श्रृंगार

कहां खोजो रुरु जैसा पत्नी प्यार

पत्नी को दे दी, आधी उम्र उपहार


बात कर रहा, भृगु वंशज रुरु ऋषि

जिनकी पत्नी, छीन ले गये, यमराज

उन्होंने अपनी आधी आयु दी, उपहार

तब लौटाये, यमराज ने उनके प्राण 


आज भी जो पत्नी का करे, सत्कार

उनके घर लक्ष्मी का होता है, वास

उस घर का मजबूत होता है, आधार

जिसकी नींव में है, पत्नी का भार


वो जीवनगाड़ी अच्छी चले है, यार

जिसके पहिये चले है, बिना टकरार

जो पत्नी माने है, बराबर साझीदार

वो गाड़ी पहुंचती है, नित स्वर्गद्वार


जो चाहते है, सीता मां जैसी नार

वो भी ले श्री राम के गुण उधार

पहले मिटा, अपना भीतरी अंधकार

फिर रोशन होगा, बाहर का संसार


नारी भी सावित्री तरह बने, एकबार

पति भी प्राण तक देगा, उन पर वार

दुनिया की सबसे बड़ी सेवा, जनाब

पहले खुद का कर लो, आप सुधार



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