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Dinesh paliwal

Drama Romance Classics

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Dinesh paliwal

Drama Romance Classics

उनमान

उनमान

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कुछ जोड़ तोड़ कर लाया हूँ,

कुछ आड़े तिरछे भी लाया हूँ,

तू खोल के ऑंखें देख जरा,

मैं क्या ख्वाब सज़ा कर लाया हूँ।। 


कुछ मेरी आँख के कतरे हैं,

कुछ तेरे मन में भी छितरे हैं,

इन बिखरे बिगड़े अरमानों को,

बस नायाब बना कर लाया हूँ,

तू खोल के ऑंखें देख जरा,

मैं क्या ख्वाब सज़ा कर लाया हूँ।। 


कुछ बारिश के कुछ धूप के भी,

कुछ ठुकराए कुछ रूप के भी,

इस जीवन के इंद्रधनुष में अब,

सब रंग सज़ा के लाया हूँ,

तू खोल के ऑंखें देख जरा,

मैं क्या ख्वाब सज़ा कर लाया हूँ।। 


ऐसा ही नहीं की ये बेचैनी,

बस तुझको ही रह के सताती हैं,

मैं भी तो कब से सोया नहीं,

ये आंखों की स्याही बताती हैं,

इस कश्ती को मिलेगा साहिल अब,

वो पतवार कमा कर लाया हूँ,

तू खोल के ऑंखें देख जरा,

मैं क्या ख्वाब सज़ा कर लाया हूँ।। 


ये किस्सा तेरा और मेरा हैं,

इसका बस हर हर्फ़ हमारा हो,

हर पन्ने पर जो लिखी इबारत,

वो ही हर दिल का समारा हो,

अपनी इस प्रेम कहानी का,

मैं उनमान लिखा कर लाया हूँ,

तू खोल के ऑंखें देख जरा,

मैं क्या ख्वाब सज़ा कर लाया हूँ।


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