।। हर जीवन छवी बन कर आना।।
।। हर जीवन छवी बन कर आना।।
जीवन पथ पर चलते चलते,
हर शाम तलक ढलते ढलते,
जब धूप से चेहरा कुम्हलाये,
ये मन कुछ व्याकुल सा हो जाये,
दे अपने आँचल की छाया तुम,
मेघों के जैसी छत बन जाना,
बस तुम मेरी ममता बन जाना।।
जब वक्त के तेज थपेड़े हों,
आशंका के सब बस पहरे हों,
जीवन जीना बेमानी हो,
मन व्यथित और अवमानी हो,
तब सहलाकर पुचकाकर मुझ को,
बस प्रेम की वर्षा कर जाना,
उस दिन तुम करुणा बन जाना।।
जब शब्द ही अपना मतलब खो दें,
पल खुशी के हों पर ये रो दें,
एक एक अक्षर हो मन सा भारी,
हों विचार बहुत पर लाचारी,
तब लेखनी हाथ में दे कर मेरे,
इस जीवन की सविता बन जाना,
तुम बस मेरी कविता बन जाना।।
चाहा था मैंने प्यार वही,
जैसे सूरज और परछाई,
वो उदय हुआ तो ये जागी,
वो अस्त हुआ तो कुम्हलाई,
तुम ही तो हो जो इस जीवन में,
चाहा मैंने फिर रवी बन जाना,
है जन्म जन्म का साथ प्रियतमा,
तुम हर जीवन छवि ही बन आना।।