एक साँस अगर खुल कर.....
एक साँस अगर खुल कर.....
एक साँस अगर खुल कर, मिल जाये तो अच्छा,
इस रूह को अगर सुकून, छू जाए तो अच्छा।
ज़िन्दगी की बंद गलियाँ, खुल जाए तो अच्छा,
एक आखरी कोई हसरत, बहल जाय तो अच्छा।
एक साँस अगर खुल कर……..
वैसे तो खुद मैंने ही, मुझे बर्बाद किया है,
सुर्ख सी सुबह को, सियाह रात किया है,
ये रात अब फिर से, गुजर जाय तो अच्छा,
इस बर्बादी का चर्चा, न हो पाए तो अच्छा।
एक साँस अगर खुल कर……..
मेरे जिक्र में तो खुल कर, कभी शामिल सब थे,
शेरों के हर अशरार पर, कभी बिसमिल सब थे,
मेरे शेर मेरे आखरी, ज़ज़्बात हो जाय तो अच्छा,
मेरी कविता मेरा आखरी, जिक्र हो जाय तो अच्छा।
एक साँस अगर खुल कर……..