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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Drama Inspirational

"वक्त"

"वक्त"

1 min
22


समय को बना लो, अपना दोस्त

जिंदगी कभी नहीं बनेगी घोस्ट

छोड़ भी दो, अब तो रोना रोज

अपने लबों पर हंसी रखो रोज

जो वक्त के अनुसार चलता है

उसके चेहरे पर होता है, ओज

रोज़ कार्य करने से बढ़े नही, बोझ

एकसाथ कार्य करने में आती, मौत

व्यर्थ का दिल से निकाल दो, बोझ

किसी के प्रति न रखो बुरी सोच

सबसे आप लोग तो स्नेह, करो 

किसी से भी न करो, नोक झोंक

समय को बना लो, अपना दोस्त

जीवन में, करोगे जरूर नई खोज

जो वक्त बर्बादी आदतों पर लगाता, रोक

वो बाद में जीवन के सब पूरे करता, शौक

कह रहा, साखी सुनो, सब बात सांची

वक्त आगे, अच्छे-अच्छे हुए, जमींदोज

यदि वक्त के अनुसार कर्म करोगे,

वक्त जमीं पर ला देगा, स्वप्नलोक

वक्त पर जो कर्मदीप जलाता, रोज

वक्त उसके जीवन का मिटाता, शोक

जो व्यक्ति वक्त को साध लेता है, दोस्त

वक्त उसे अमावस में देता, पूनम आलोक



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