रोम रोम में राम
रोम रोम में राम
मोल नहीं है उस वस्तु का
जिसमें मेरे राम नहीं
रोम-रोम में मेरे राम है बसते, राम बिना हनुमान नहीं।।
आश्चर्यचकित हो दुनिया देखती
क्या सीता की मणियों का कोई दाम नहीं
अपमान करता उपहार का मात के, ये मामूली कोई बात नहीं।।
हिमाकत करता अहंकार में भरता
विभीषण जिसको दुनिया कही
मोल नहीं है तन का तेरे, तज सकता तो तज दे यहीं।।
बात लग गई बजरंगी को
बोले ज्योति तन-मन में मेरे राम जली
सीता-राम मेरे हृदय बसते, दुनिया देखेगी आज भक्ति मेरी।।
हुंकार भरी बजरंगी ने
उनकी काया थोड़ी बढ़ने लगी
चीर दिखाते हृदय को अपने, मूर्ति सीता-राम की उसमें बसी।।
धन्य-धन्य उन्हें हर जन कहता
जय जयकार भी होने लगी
लज्जित होता रावण भ्रात तब, थी चुभने वाली उसने बात कही।।
राम ही उनके तन-मन में बसते
राम में उनकी स्वास बसी
भक्त शिरोमणि हनुमत कहलाए, जिन्होंने भक्ति की अनोखी कथा रची।।