१.चूल्हे पर चाय
१.चूल्हे पर चाय
मेरी तरह ये शाम भी बेखबर है,
थोड़ी सहमी थोड़ी बेसब्र है,
आई जो है थोड़ी जल्दी भी है,
रात का डर है ना जाने या कोई शिकायत रात से है,
वो चुप्पी होंठों को दे खुद बिखरी खैरात है,
फिर भी प्याली चूल्हे पर चढ़ा दी,
भीनी सी खुशबू खनक कर छन के आई थी,
मानो कह रही थी बात कोई,
दे रही हो मानो खबर कोई,
मैंने बाटी दो खबर शाम से,
बैठी वो कुछ पल को मेरे साथ जो,
मेरी लटों ने चेहरे पर आकर कुछ शरारत करी,
मैंने घूंट प्याली से भरा और इस शरारत पर हँस दी,
हौले जो चली हवा ये मानो शाम के कानों में करी कोई चुगली हो,
हल्का मुस्कुराई शाम मानो प्रेयसी को खत प्रियतम ने भेजा हो,
बस यूं ही ये शाम गुज़रे आहिस्ता सी,
मैं खुद को बाट लूं बन के चाय की खुशबू सी,।।
