दर्द की इम्तहाँ तक
दर्द की इम्तहाँ तक
दर्द की इम्तहाँ तक मैं हँसता रहूँ
मेरे मालिक मुझे वो हुनर दीजिए
दर्द रखकर के खुशियाँ लुटाता रहूँ
जिंदगी का मुझे वो सफर दीजिए
दर्द की इम्तहाँ तक...
दोस्त मुझको मिलें ना मिलें गम नहीं
मैं जिसे भी मिलूं दोस्त जैसा मिलूँ
मेरे हिस्से में काँटोँ के हो सिलसिले
पर जहां भी खिलूँ फूल बन कर खिलूँ
ईंट गारों के घर में बसर हो ना हो
सब के दिल में मगर मुझको घर दीजिए
दर्द की इम्तहाँ तक...
क्या मिला मुझको दुनिया से सोचेंगें फिर
क्या दिया हमने सबको ये संज्ञान हो
जिस जगह पर रहें प्यार बाँटें सदा
हम रहें ना रहें मेरा सम्मान हो
मेरे अधरों का अमृत ना सूखे कभी
मेरी किस्मत में बेशक जहर दीजिए
दर्द की इम्तहाँ तक...
लोग सोचें मेरे बाद कैसा था मैं
और सब नम निगाहोँ से बातें करें
दिन सा खिलता रहूँ वक्त की साख पर
साजिशें लाख दुनिया की रातें करें
दर्द सारा ढले ख़ुशियों की शक्ल में
ऐसा कोई चमत्कार कर दीजिए
दर्द की इम्तहाँ तक...