भूमिका
भूमिका
मैं एक नारी हूं, जो अबोध को सुबोध बनाती हूं
एक स्वस्थ शिशु की पालना में अपना सर्वस्व
लुटाती हूं
मैं एक नारी ही हूं जो मकान को घर बनाती हूं
सकारात्मक ऊर्जा से मनुष्यों के मन मस्तिष्क को
शुभ भावनाओं से पोषित करती हूं ,
संस्कारों के बीज अंकुरित कर समृद्ध समाज की
नींव रखने की पहल करती हूं
हम नारी है
हमारी भूमिकाएँ अदृश्य हैं
परंतु नींव की बुनियाद हम ही होती है
समृद्ध समाज की कर्णधार भी हम ही होती हैं
समाज की तरक्की और उन्नति के सूचक
की प्रथम भूमिका हम महिलाओं की होती है
दुर्गा है , काली हैं,अन्नपूर्णा है सरस्वती हैं
फिर भी सहनशक्ति और प्रेम का सागर हैं
हम महिलाएं क्या करती हैं कह कर भी ,
समाज नींव में मील का पत्थर बनकर खड़ी रहती हैं
कांधो पर समृद्ध समाज की नींव का भार होता है
नींव हिलती है तो सारी सृष्टि हिल जाती है
हम महिलाओं की भूमिका पर्दे के पीछे के सच्चे
और अथक पुरुषार्थ का परिदृश्य होती है।
रंगों के इस उत्सव में आओ सखियों
हम सब मिलकर एक रंग में रंग जाएं
आओ नीलिमा, आओ लालिमा, आओ हरियाली,
आओ पीताम्बरी,आओ सुनहरी, आओ बैंगनी
तुम क्यों पीछे बैठी हो, आओ हम सब मिलकर
सतरंगी दुनियां बनाए।
निस्वार्थ प्रेम के रंग में सबको रंग कर पिछले सारे
गिले-शिकवे भुलाएं।
आओ गले मिलकर सतरंगी दुनिया के सपने
सच कर जाएं।
रंगना तुम मुझे अवश्य सखी परंतु स्नेह के मीठे रंग
में रंगना
परस्पर प्रेम और विश्व कौटूबकम का हम सब का
सपना सच करना
रंगों के इस मौसम में, कुछ रंग मैं भी लायी हूँ।
फाल्गुनी बहार में, कुछ रंग मीठास के लायी हूँ " मैं "
धरती की हरियाली भी है, आसमानी नीला भी है,
इंद्रधनुषी रंगों की सतरंगी फुहार लायी हूँ" मैं"
इंसानियत के रंग में रंगने आज सबको आयी हूँ,"मैं"
निस्वार्थ प्रेम की मीठी मिश्री सबको खिलाने आयी हूँ "मैं"
ईर्ष्या,द्वेष, के भद्दे रंगों को सदा के लिए मिटाने आयी हूँ
इस रंगोत्सव इंसानियत के रंग लायी हूँ "मैं"
पुष्पों के मौसम में,दिलों को प्रफुल्लित करने आयी हूँ "मैं"
सब धर्मों से ऊपर उठकर, इनसानियत का धर्म निभाने आयी हूँ "मैं",
होली के त्यौहार में कुछ रंग प्रेम के लायी हूँ "मैं "
निर्मल मन से, स्वच्छता के रंगों की बरसात करने आयी हूँ "मैं"