देख सकता हूं
देख सकता हूं
देख सकता हूं
एक ही पहलू
एक समय में
जब खुश होता हूं
किसी से भी
तब खूबियां...
गर नाराज़ हुआ किसी से
तब हर एक में
बुराइयां ढूंढता हूं।
मैं,
एक इंसान,
देख सकता हूं।
बहुत भरोसा है,
अगर आप नए मिले है,
कुछ तो काम आते हो मेरे,
गर किसी दिन,
काम रह गया अधूरा...
तब सारी अच्छाइयां खेलती है
छुपन - छुपाईयां...
बेगैरियत - बेकार - बेवकूफियां
सारी गलतियां,
नहीं पता कब की है,
सामने मुझरा करती है...
तब देखता हूं...
केवल नचनिया...
भूल जाता हूं
है अहसान,
बस देखता हूं
मैं देख सकता हूं।