घी में अब स्वाद नहीं।
घी में अब स्वाद नहीं।
थाली लबालब भरी है ,
रोटी पर,
झूमतेे घी की थिरकन,
साफ़ दिख रही हैं,
पर अब इसमें , वो 'रस' नहीं है,
क्योंकि ;
ग़रीब की मेहनत की क़ीमत कहां हैं?
दिन भर की शिकन के बाद भी,
ये एक रोटी कमा पाया हूंं,
जो मेरी ही थाली में
चोड़ी होकर लेेेटी हैं
बच्चों ने भी,
अपनी
भूूख और मन को मसोस लिया है,
पापा..! इस घी में स्वाद नहीं हैं।
