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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama

फागुन की हवा

फागुन की हवा

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फागुन की चलने लगी है सुहानी हवा

बदलने लगी है मौसम की अब अदा

धूप अब तो अच्छी नही लग रही है,

अब पंखे,कूलर की चलने लगी है हवा


केसू के फूल,मन को कर रहे है कूल

होली के रंगों की हो गई है,अब फ़िजा

फागुन की चलने लगी है सुहानी हवा

दरख़्तों पर अब कोई पंछी ठहरता नही है


अब बदले से माहौल में

घुलने लगी है भांग की दवा

बहुत खूबसूरत ये फागुन का महीना है

फसले भी पककर हो गई है अब जवां


पंछी ख़ुश है,किसान खुश है

सबके दिलों पर छाने लगी है

अब अल्हड़ सी मस्तानी सी फागुन की हवा

फागुन की चलने लगी है सुहानी हवा।


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