ऐ मेरे बचपन लौटके आ ज़रा
ऐ मेरे बचपन लौटके आ ज़रा
ऐ मेरे बचपन लौटके आ ज़रा
बिना टेक्नोलॉजी के जीना सीखा ज़रा
वो गाँवों की गलियोमे नंगे पैर खेलना
वो दोस्तों के साथ खेतों में टहलना
वो बारिश की बूंदों को मजे से पीना
वो खुद ही के ख्यालों में मजे से जीना
वो गाँव की मिटटी वो खेतों का पानी
वो साइकिल पे दोस्तों की टिन टिन की सवारी
वो फटे हुए जूते और वो शर्ट भी पुरानी
याद आती है मुझे मेरी गाँव की कहानी
ना मोबाइल ना घड़ी ना व्हाट्सएप की यारी
ना फेसबुक ना ट्विटर ना इंस्टा की यारी
अपनी तो नानी की परियों की कहानी
वो खेतो में खाना और खुले में नहाना
वो हर रोज़ स्कूल देरी से जाना
वो मिटटी के खिलौने हाथों से बनाना
आज भी याद आता है वो बीता हुआ ज़माना
वो पापा का कमाना और सबका खाना
फिर भी जिन्दगी खुशी से बिताना
काश कोई लौटा दे वो बचपन मेरा
जिस गाँव में था वो खुशी का सवेरा।