प्रभ आगे अरदास
प्रभ आगे अरदास
ओ मेरी प्रिय डायरी
आज सुनी मैंने शायरी
याद आगया कॉलेज का ज़माना
जब दिल हुआ करता था दीवाना
सुबह हुआ करती थी गीतों से
शाम ढहलती थी संगीतो से
वो कबूतर का जाना
लव लेटर का आना
घर के सामने आशिक़ों की लाइन
बिना फेसिअल ही चेहरे पर रहता था शाइन
अब तो बदल गया है ज़माना लॉक डाउन में भी
चल रहा हैं प्यार का फ़साना
वीडियो कॉल होती है सुबह शाम
आजकल तो बस यही है काम
भारत प्यार के लिए मशहूर है
छाया रहता लैला मजनू का सरूर है
प्यार का मौसम अच्छा लगता हैलेकिन
भारत को नज़र लग गयी ऐसा लगता हैं
प्रभु बख्श दो जो भी खता हुई है हमसे
माफी मांगते हैं दिल से
हाथ जोड़ अरदास करते हैं
इस रोग को दूर करो
आप ही ठीक कर सकते हैं
प्रभु आप ही सब ठीक कर सकते हैं।