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Sonias Diary

Abstract Drama

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Sonias Diary

Abstract Drama

दिमाग का दही

दिमाग का दही

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आज तो सिर चक्कर खाने लग गया 

एक ही वक्त में 3 क्लास चल रही थी। 

बच्चों की ऑनलाइन क्लास 

पति देव की ऑफिस क्लास।


एक बालकनी में गया

एक कमरे में और 

एक सोफ़ा पे। 

(छोटे घर की परेशानियां)


सोच पड़ी दिमाग में 

अगर घर में आईपैड फोन

ना होता तो कैसे मैनेज होता। 

या फिर जिनके घर में दो बच्चे हैं

और मां बाप दोनों नौकरी करते हैं। 


वर्क फ्रॉम होम वो

कैसे कर रहे होंगे या फिर

जिनके पापा डॉक्टर, पुलिसमैन

या फिर बैंक में नौकरी करते हैं।


वो कैसे इतने गैजेट्स

बच्चों को दे पा रहे होंगे।

जिनका घर सुख सुविधा से परिपूर्ण है,

उनके लिए ये सब कुछ मायने नहीं रखता 

मगर बाकी कैसे कर रहे होंगे।


एक तरफ लॉक डाउन की परेशानी

एक तरफ राशन तरकारी के मसले

एक तरफ घर परिवार के काम और झमेले

बच्चों के नखरे

अब ज़ूम कभी गूगल के लिंक की उलझने 

भागम भाग मची हुई।


और सब जगह सुनाई पड़ रहा।

कोई काम नहीं।

यहां खाने के वक्त पर खाने का वक्त नहीं

और लोग बोल रहे कोई चक्कर नहीं।


इंसान उलझा अपनी ज़िन्दगी में

इंसान बोल रहा इसको मेरा होश नहीं।

दिमाग का दही बन गया 

स्कूल वालों ने कहीं का नहीं छोड़ा मां बाप को, 

Watsapp, facebook, Google, 

हर जगह जाल फैला कर रखा हुआ है।।


ऊपर से घर का जाल

और काम का महाजाल

समझ नहीं आ रहा 

हम इंसान ही हैं

या के मकड़ी बन गए।


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