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Sonias Diary

Others

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Sonias Diary

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लोगन

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इसकी आँखें बहुत प्यारी 

ऐसे लगता १०० कहानियां हैं समेटे,

मगर कहां आता इन मासूमों को जज़्बात कहना,

ये तो बस महसूस करवा देते ,

अपना होना, अपना प्यार, अपनी नादानियां , अपनी फिक्र और अपना दुलार,

कितना डरती थी मैं,

ऐसा नहीं बचपन से एसा डर था,


घर पर भी था एक मोती,

मगर उसकी यादें धुंधली सी हैं ,

मै शायद ५–६ में रही होंगी ,

चार दिन उसे घर पर अकेले छोड़ ,

वैष्णो मां की यात्रा के लिए थे निकले

घर पर कोई नहीं, सिर्फ मोती,

बगल की दुकान वाले को था बोल दिया,

खाने को बंद और पानी दे देना उसे..

घर में था, अकेले था,

हमने कभी ध्यान ही नही दिया,

वो बेचारा ४ दिन 

कुछ खाया नहीं खाया पता नहीं ,

मगर हां बहुत कमज़ोर हो गया था,

जैसे ही हमारी बस घर के कपाट पर पहुंची ,

बस में से गूंजते जयकारे ,

और उसकी ध्वनि,

शायद वो पल मै उसको महसूस नहीं कर पाई ,

बस का दरवाजा खुला,

वो घर के दरवाजे के ऊपर चढ़ा ,

सबसे पहले पापा उतरे ,

और ड्राइवर कंडक्टर को कुछ हिदायतें देने लगे, 

और वहां मोती इतने में भौंकने लगा,

मै दृश्य खिड़की से देख रही था,

और मैं हसने लगी ,

देखो कैसे कर रहा है ,

पापा पीछे चले गए,

समान देखने, डिक्की देखने ,

और कारीगरों को आवाज लगा दी,

वो उतरे और पापा को मदद में लग गए,

और फिर हम धीरे धीरे सब ,

उनका परिवार और हमारा संयुक्त परिवार।।।

यादों के मोती कैसे बहने लगे ........ खैर 

मैंने घर के दरवाजा के समक्ष कदम रखा वो फिर गेट के ऊपर चढ़ा , 

फिर पीछे भागा, और भोंकता गया भोंकता गया,

५–६ बंद पड़े थे

जिसको छुआ तक नहीं गया था,

मैं उसके पास गई,

वो मुझसे दूर भागा, और भोंकता रहा,

मै फिर पास गई ,

वो अब भाग गया था,

घर की छत पर,

पता नही क्या हुआ था,

मैंने छूने को कोशिश की थी,

और वो भाग गया था,

मै गई छत पर उसके पीछे,

वो एक कौने में बिलकुल चुप

बिलकुल खामोश बैठा था,

मै उसके पास गई,

मैंने उसे छुआ , वो कुछ न बोला,

उसकी आंखों में आंसू थे,

मगर मेरे मानने पर वो झट मान गया था,

बहुत ज्यादा प्यार दिखाया,

उसकी पूंछ, उसका प्यार दिखा रही थी,

नीचे गई पीछे पीछे आगया,

सबको छूने की कोशिश,

सबसे प्यार लेने का जुनून,

जो आज मुझे समझ आता है,

शायद उस वक्त वैसा महसूस नहीं हुआ था,

उसने घर का फर्नीचर पूरा खराब कर दिया था,

गुस्से में पापा छोड़ आए थे उसे कहीं,

दो बार आ गया था वापिस,

फिर चला गया पता नही कहां,

मुझे आज भी याद है, 

छोटे ने और मैंने खाना नही खाया था ,

और बहुत रोए थे,

बस उसके बाद कोई नहीं आया घर पर एसा दोस्त,,


पता नहीं कब धीरे धीरे एक डर सा होने लगा

डर खौफ में बदल गया ... 

ये आया और मैं भागी दूर , बहुत दूर ... एसा खौफ 


मगर इतने सालों बाद ...

एक दिखा मासूम सा लोगन ,

बहुत ही छोटू ,

बहुत ही प्यारा ,

पता नहीं उसकी आंखों की पुतलियों

से मुझे उसका देखना,

मुझे डर नहीं लगा,

मुझे आज भी याद है,

लोगन छोटी सी दीवार में बैठा था,

चारों टांगे समा गई थी ,

कितना कोमल , कितना प्यारा ,

कितने रेशमी बाल थे,

मेरे मुंह से एकाएक निकला भी था,

Aww कितना सॉफ्ट है !

कितना प्यारा है...

मेरा एसा बोलने भर से,

लोगन ने अपनी गर्दन टेड़ी करली 

और मुझे शायद और प्यार से निहारने लगा ...

पहला पल कभी नही भूलता ,

उसके बाद तो जैसे सब कुत्तों से प्यार हो गया ,

बहुत प्यार ...

लेकिन खास बात ये है की अब ,

ये भाई साहब बड़े हो गए हैं , बहुत लंबे भी....

आज जन्मदिन भी है इनका ,

हैप्पी बर्थडे टू लोगन ।।


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