जीवन की धारा
जीवन की धारा
मैं चली कहां से थी,
पहुंची कहां तक,
जिंदगी का ये सफर,
हर एक रंग दिखा गया.
यौवन आया रंग ले गया,
प्रेम आया, तड़पन दे गया,
कुछ आया तो कुछ छीन गया,
रास्ते अनगिनत दिखे.
कभी साथ का, कभी दोस्ती का,
कभी परिवार का, कभी रिश्तों का,
जो धारा प्रवाहित आज हो रही ,
वो इन रास्तों की कहानी को पूरा कर,
एक ओर कहानी कह है रही.
जहां परेशानी तो है मगर परेशान नहीं हूं मैं,
जहां दुख तो है मगर दुखी नहीं हूं मैं,
कमी है बहुत लेकिन अधूरापन नहीं है,
यौवन छूट रहा मगर कुछ भी छूटा नहीं है.
ना किसी का बुरा, ना कोई बुरा,
ना अहम, ना कोई जद्दोजहद,
शांत मन, शांत चित्त और सिमरन
बस.....
