इंसान– भगवान !!
इंसान– भगवान !!
जानवर और इंसान, है तो एक दाता की सौगात,
कलयुग का प्रकोप कुछ ऐसा छाया है,
उस विधाता को भी खुद पर रुदन आया है।
"क्या सोच रखा था ए इंसान,
भेजा था, धरती को तेरी विरासत बना,
तुझे बनना था मुझ जैसा
चाहिए था साज सम्मान, प्यार, ऐश और आराम,
सब पाया फिर भी तुझे रास ना आया,
बना परमेश्वर जिसे भेजा था धरती पर,
खुद को मुझसे ऊपर उड़ने की चाहत,
कलयुग तक ले आई,
अब आगे क्या,
तेरा ही बनाया जाल,
तेरा ही बनाया कीचड़,
बस अब फंसता जा, धंसता जा।।"
