STORYMIRROR

Sonias Diary

Abstract

3  

Sonias Diary

Abstract

इंसान– भगवान !!

इंसान– भगवान !!

1 min
179

जानवर और इंसान, है तो एक दाता की सौगात, 

कलयुग का प्रकोप कुछ ऐसा छाया है,

उस विधाता को भी खुद पर रुदन आया है।

"क्या सोच रखा था ए इंसान, 

भेजा था, धरती को तेरी विरासत बना,

तुझे बनना था मुझ जैसा 

चाहिए था साज सम्मान, प्यार, ऐश और आराम,

सब पाया फिर भी तुझे रास ना आया,

बना परमेश्वर जिसे भेजा था धरती पर,

खुद को मुझसे ऊपर उड़ने की चाहत,

कलयुग तक ले आई,

अब आगे क्या,

तेरा ही बनाया जाल,

तेरा ही बनाया कीचड़, 

बस अब फंसता जा, धंसता जा।।"


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract