बेज़ुबान इश्क़
बेज़ुबान इश्क़
मिली एक परी, जो थी थोड़ी दूर खड़ी।
था नूर कुछ उस लम्हे में, दिमाग भी ना आया चलने में।
जैसे उसके कदम बढ़े, दिल की धडकन तेज़ लगे।
उठा मन में सवाल कह दूं कि "तुम हो खूबसूरत बेशुमार"
उसे देख लफ्ज़ थम से गये कुछ कह ना सके।
डूब सा गया वो लम्हा जब उसने अपनी झील सी आँखों से मुझे देखा।
मानो उसकी आंखे मेरी आँखों मे समां गयी और कुछ अनसुनी सी बाते कहने लगी।
उस वक़्त का एहसास कैसे बयाँ करू, हवाए कानों में कुछ फुसफुसा कर चली जाए।
वृक्ष के पत्तो की सरसराहट कोई गीत गुनगुनाये,पंछी कोई प्रेम राग सुनाये।
जब सूर्य की एक किरण ने आँखों पर चौंधा किया तो मै एहेसास से जगा।
उसको कुछ कहता ही कि मन में 100 सवाल उठने लगे।
"कहीं उसको बुरा ना लग जाये, नाराज ना हो जाये,अभी अनजान हैं।"
बस बेज़ुबान सा खड़ा रहा कुछ कहने से डरता रहा।