कोई हमराह नहीं है
कोई हमराह नहीं है
जिसको प्रेम की चाह नहीं है,
उसको अपनी परवाह नहीं है।
दर्द-ओ-ग़म बहुत है ज़माने में,
दिल से निकलती आह नहीं है।
जिसको प्रेम की चाह नहीं है,
उसको अपनी परवाह नहीं है।
मेरा सफ़र तो है मुश्किलों भरा,
ज़िन्दगी में कोई हमराह नहीं है।
जिसको प्रेम की चाह नहीं है,
उसको अपनी परवाह नहीं है।
शायर कितना भी परोसें ले दर्द,
लोगों से मिली वाह-वाह नहीं है।
जिसको प्रेम की चाह नहीं है,
उसको अपनी परवाह नहीं है।
लोगों ने कहा रास्ता भटक गया,
अब तो कोई भी ग़ुमराह नहीं है।

