अधूरा प्रेम
अधूरा प्रेम
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मेरा हाथों पर ठोड़ी टिका कर
घंटों तुमको अपलक निहारना
तुमको ढीढ़ बनाता गया;
नज़रें मिला नहीं पाते
या संकोच है तुम्हारे भीतर
या कहूँ…...
कुछ छुपा है मुझसे इतर!
जानती ... हूं मैं
अक्सर पूरा वक़्त देने वाला
कमतर आँका जाता है;
शिकायतें ना भी हों
किन्तु शक कि गिरह
उसको घेरे रहती हैं;
प्रेम कम हो तो भी...
प्रेम ज़्यादा हो तो भी;
ये मूक संवाद
तोड़ देता है
गुरूर मेरा हर बार
कि बंधे हो तुम
मेरे ख्यालों से
जबकि...तुम्हारी सोच
खुला आसमान नापती है !
मैं वहीँ बाट जोहती
तुम्हें आते-जाते देख रही हूँ
तुम भरपूर कब आओगे !