क्या तुझे है पता ?
क्या तुझे है पता ?
ये जो छुप-छुप कर,
देखती हैं मेरी नज़रे तुझे,
कुछ कहना चाहती हैं तुझसे,
क्या तुझे है पता ?
क्यों नहीं समझता, तू इनकी बातें ?
आज तू मुझे ये बता।
मै खो जाती हूँ तुझमे तेरी आँखों के सहारे,
नहीं मिल पाते मुझे दुबारा से किनारे,
क्या तुझे है पता ?
क्या जानता है तू,
किनारों तक लौट आने के रास्ते ?
आज तू मुझे ये बता।
ये जो कहना चाहते हैं,
मेरे लब तुझसे ही तेरी बातें,
ऐसा लगता है जैसे हों लड़खड़ाते,
क्या तुझे है पता ?
क्यों सिले से हैं, क्यों रोकते हैं,
खुद को तेरे सामने आने से ?
आज तू मुझे ये बता।
तेरी बातों में उलझ-सी जाती हूँ कहीं,
भूल जाती हूँ कि सब हैं यहीं-कहीं,
क्या तुझे है पता ?
तेरे सिवा क्यों याद नहीं रहता मुझे कुछ ?
आज तू मुझे ये बता।
ये जोरों से धड़कते मेरा दिल का,
मेरी बढ़ती हुई साँसों की गर्मी का,
क्या तुझे है पता ?
क्यों हो जाता है ये सब,
सिर्फ तेरे पास होने के एहसास से ही ?
आज तू मुझे ये बता।
तेरे दिल की बातों से अनजान हूँ मै,
सब कहते हैं थोड़ी भोली,
थोड़ी नादान हूँ मैं,
क्या तुझे है पता ?
फिर भी तुझे समझने के लिए,
अपनी ही बेतुकि-सी,
तरकीबें क्यों लगाती हूँ मैं ?
आज तू मुझे ये बता।
पूरी रात गुज़र जाती हैं,
तेरे बारे में सोचते-सोचते,
दिन में तेरे ही सपनों में सोती हूँ मैं,
क्या तुझे है पता ?
क्या पूरे होंगे तेरे मेरे साथ के ये सपने ?
आज तू मुझे ये बता।
मालुम है मुझे कि तू मेरा नही है,
फिर भी एक रिश्ता सा है तुझसे मेरा,
क्या तुझे है पता ?
क्या कोई है तेरा जिसके लिए,
तू भी इतना ही पागल हो ?
आज तू मुझे ये बता।
तुझसे दूर जाने की,
कोशिश तो लाख करती हूँ,
फिर भी तेरे तरफ दोबारा चली आती हूँ,
क्या तुझे है पता ?
तू क्यों खींच लाता है मुझे हर बार ?
आज तू मुझे ये बता।
मेरे हालात का क्या तुझे हैं पता ?
आज तू मुझे सच में ये बता।
आज तू मुझे सच में ये बता।