मिली जो मैं तुझसे
मिली जो मैं तुझसे
जिंदगी ये नयी सी हुई फिर से शूरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
सारी खुशियाँ मेरी हुई मुझ से ही रूबरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
पाया तुझको तो हुआ ये किस्सा शुरू
जैसे मिली मैं खुद से
हाँ बस तुझसे ही
पल कुछ ख़ास रहा ही होगा वो
जब खुदा ने लिखी होगी
शायरी तेरे मेरे साथ की
मुस्कुराया तो जरूर होगा वो
जब जुडी होगी
डोर तेरे मेरे इस अनकहे से एहसास की
वक़्त भी थोडा रुका होगा देखने को वो
जब शाम हुई होगी
तेरी मेरी पहली मुलाकात की
मिश्री से घुले होंगे हवा में जज़्बात वो
जब अनजाने ही मिली होगी, झुकी होगी
नज़रे मेरीे अपने आप ही
फिर बातों का पहला सिलसिला वो
तब जरूर रुकी सी होगी
मेरी धड़कनो की आवाज़ भी
धड़कने मेरी तब हुई फिर से शूरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
झूमी रात भर बाँध पैरों में घुँगरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
तपिश थी दिल में मानोे कोई मरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
वार तो मुझे याद नही वो
पर जरुरी वारी होगी नज़र उतारी होगी
जो लगी होगी तुझे ज़माने भर की
सुन कर तेरे प्यारे मीठे बोल वो
मेरी जुँबा कुछ ना बोली होगी
बस गूंजी होगी आवाज़ मेरे दिल में तेरी नाम की
फिर गहरी सी मेरी साँसे वो
साथ ले आई होगी
महक तेरे आफताब की
हर बार मेरी नादान नज़रे वो
जब चुप चुपके तुझे देखती होगी
महसूस तो की होगी मेरी तड़प तूने भी
जब पकड़ी होगी तूने मेरी चोरी वो
आँखें तो मैंने जरूर चुराई होगी
पर रह न पायी होगी देखे बिना तुझे एक पल भी
हर पल ऐसा लगा मानोे ज़िन्दगी हुई फिर से शुरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
खुद से मैं फिर हुई रूबरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
ज़िन्दगी हुई ये फिर से शुरू
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही
मिली जो मैं तुझसे
हाँ बस तुझसे ही...!