अनकहा सा पहला प्यार
अनकहा सा पहला प्यार
गुमसुम खुद ही खुद में खोये से थे
अकेले में थोड़ा शायद रोये से थे,
थे आँखों के आस-पास पानी के निशाँ
और भीतर से सूखे पतझड़ की तरह सोये से थे।
खुल कर जीने की चाहत थी
दिल लगाने की हसरत भी थी,
थी इच्छा जज़्बातों को बयान करने की
और चीखती चिल्लाती एक ख़ामोशी भी थी।
अकेले नहीं थे
थोड़े तन्हा से थे,
थे उलझे कुछ सवालों में
और कुछ सवालों के हम जवाब से थे।
थोड़ा सर खुजलाया थोड़ा बालों को नोचा था
इस तन्हाई से लड़ने का एक तरीका सोचा था,
था जाना कि यूँ बैठे रहने से नहीं मिलेगी राहत
तो खुद से ही खुद के लिए सवाल खोजा था।
ज़िन्दगी में लोग अपने थोड़े पाये थे
जितने पाये उनसे ज्यादा बेवजह ही खोये थे,
थे कुछ जिनके लिए मैं थी ख़ास
और कुछ थे जो मेरे सच्चे यार बन आये थे।
इन सब में कोई तो बहुत ख़ास रहा होगा
जिससे मेरा कुछ ज्यादा ही एतबार रहा होगा,
होगा उसका मेरा रिश्ता कोई अनोखा
या वो शायद मेरा पहला प्यार रहा होगा।
यही खोजने पुरानी यादों की गठरी तक जा रही थी
पुरानी यादों से फिर एक मुलाकात बुला रही थी,
थी खट्टी मीठी सी बातों की रातों लम्बी यादें
और कुछ लोगों के अनकहे एहसास चुरा रही थी।
वो जो बचपन में एक शरारती सा बच्चा था
या लड़कपन में बगल में बैठता लड़का वो सच्चा था,
था बस में साथ जाने वाला एक इंसान प्यारा सा
या ये दिल ही था मेरा जो थोड़ा-थोड़ा कच्चा था।
इन सबके मेरे बीच एक फ़ासला असरार सा था
जिसको पार करने की कोशिश करना बेकार सा था,
था साया मुझ पर मेरे परिवार का
या शायद मेरा परिवार ही मेरा पहला प्यार सा था।
हाँ शायद मेरा परिवार ही मेरा पहला प्यार सा था
ये प्यार मेरा बेशुमार सा था,
मेरा परिवार ही मेरा पहला प्यार सा था।।