थी मेरी भी एक दुनिया
थी मेरी भी एक दुनिया
आँख खुली जब होश संभाला,
शुरू किया था जब जपना,
भीड़ बहुत थी स्कूल बड़ा था,
तब मुझे मिला था एक अपना।
घोड़ा था जब काठी का और,
लकड़ी की जब काठी थी,
तब हम दोनो की नम आँखों ने,
अपनी दहशत बाँटी थी।
अब जब घर के बाहर भी,
मेरी एक छोटी-सी संगत थी,
थी मेरी भी एक दुनिया जिसमें,
एक दोस्त से रंगत थी।
बड़ा हुआ जब शहर का,
मैंने चप्पा-चप्पा जान लिया,
घूमा था मैं साथ में जिसके,
दोस्त उसे अब मान लिया।
उतना ही हम साथ में रहते,
जितना के हम लड़ते थे,
लोग हमें अब बौने लगते,
अब कम दुनिया से डरते थे।
रौनक़ चा के ठेलों पे,
जब नम हवा में ठंडक थी,
थी मेरी भी एक दुनिया जिसमें,
एक दोस्त से रंगत थी।
वक़्त ने करवट ली तो देखा,
के सच में उम्र दराज़ हुई,
साथ मेर
े एक शख्स था,
के उसको भी चंद,
रूपियों की आस हुई।
मिलकर दोनों जूझते थे,
कुछ बड़ा हमारा ख़र्चा था,
मेरा उसपर, उसपर मेरा,
थोड़ा-थोड़ा क़र्ज़ा था।
दिल आज़ाद थे हमारे,
ज़िंदगी मग़र अब बंधक थी,
थी मेरी भी एक दुनिया जिसमें,
एक दोस्त से रंगत थी।
अब धीमी हो चली थी,
दिल में जो तेज़-सी आँधी थी,
अमीरी तो अब इतनी थी,
के बालों के रंग में भी चाँदी थी।
अब नींद से खिटपिट रहती थी,
आलस भी कम आता था,
सेहत और सैर के बहाने,
एक दोस्त मुझे मिल जाता था।
बूढ़ी आँखे पढ़ लेती थी,
चेहरे पे जो भी बात थी,
बीच हमारे कुछ लड़ने को था तो,
बस एक शतरंज की बिसात थी।
पास कुछ था तो बस चढ़ता,
सूरज और यारों की पंगत थी,
थी मेरी भी एक दुनिया जिसमें,
एक दोस्त से रंगत थी।