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Ranjan Shaw

Drama

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Ranjan Shaw

Drama

वो भूल गए थे शायद

वो भूल गए थे शायद

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हमने स्कूलों का निर्माण होते देखा है

उसमें मजदूरों के बच्चों को जाते नहीं देखा है

उस आलिशान भवन को स्कूल बता

लोगों को ठगते देखा है।


जेबों को लुटते देखा है

सपनों को टुटते देखा है

कंधों पर किताबों का बोझ बढ़ाकर

स्कूलों को व्यापार करते देखा है।


किताबें, बैग, कपड़े और जूते सभी बेचकर

स्कूलों ने किया उन्हें ज्ञान से अछूता है।

हमारे देश के लोगों को

स्कूलों के व्यापारियों ने लूटा है।


शिक्षा का ढोल पीटने वाले

ट्यूशन में अब शिक्षा देते हैं।

स्कूलों की आलिशान क्लासेस को दिखा

मोटी रकम लेते हैं।


कहां गए वो अधिकारी

जिसने लिखा था ‘शिक्षा का अधिकार सबका है’

हमारे देश में अब भी

करोड़ों गरीबों का तबक़ा है।


वो भूल गए थे शायद

अपने घर के नौकर चाकर और माली को

वो भूल गए थे शायद

अपने पेट के अन्नदाता किसान को।


वो भूल गए थे शायद

अपनी आलिशान ज़िंदगी में।

उन्हें आलिशान बनाने वाले

उन मजदूरों के हाथों को।


वो भूल गए थे शायद

शिक्षा को सबका अधिकार बनाना है

वो भूल गए थे शायद

स्वयं को शिक्षित करना है।


वो भूल गए थे शायद,

वो भूल गए थे शायद….


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