"कलंकित"
"कलंकित"
क्या हुआ
कोई जानता ना था
जो हुआ
उसे कोई मानता ना था
लेकिन फिर भी लिखा गया
हर बार कलंकित किया गया
उसके चरित्र का परिहास बना
हर बार गिद्ध भोज किया गया
अब उसे दुत्कार कर
तुम अपना पलड़ा झाड़ते हो
उसे अपवित्र और
स्वयं को पवित्र मानते हो
तुम पूछते हो सवाल जब उससे
तो उसे हर बार लज्जित होना पड़ता है
समाज से बहिष्कृत होकर
उसे कलंकित होना पड़ता है
दोष उस रात की ना थी
ना ओयो की बात की थी
तुम नशे में मदहोश थे
वह भी नशे में मदहोश थी
चांद की चांदनी में
दोनों ने जो मिलन किया
उसका ही फल
आज उसे कलंकित किया
क्या किसी का नया आगमन
कलंक होता है ?
यह प्रकृति के नियम का
यह अंक होता है ।
