नारी
नारी
नारी तुम कितनी चंचल हो
इस करुणा के सागर में
अश्व शक्ति सा बढ़ा करो
अपने जीवन के आंगन में।
शत्रु विजय रथ रोके हैं
बनकर विकराल रूप धारी
तुम प्रेम सा बहा करो
हो जाओ सबमें न्यारी।
अपनों के लिए तुम्हें
त्याग तपस्या करना होगा
तुम्हें अपनी ममता से
इस दुनिया को संवारना होगा।