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Prem chandra Tiwari

Drama Inspirational Others

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Prem chandra Tiwari

Drama Inspirational Others

मैं अकेला रह गया हूँ बस अकेला

मैं अकेला रह गया हूँ बस अकेला

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आज तक मैं शब्द जिसके लिख रहा था

रूप और माधुर्य जिसके लिख रहा था

छोड़कर बेझिझक ओझल हो गया वह

मैं अकेला रह गया हूँ , बस अकेला


दूर से आया हुआ मेहमान था वह

मेरी कविता में धड़कता प्राण था वह

वह हवा के साथ उड़ता था कभी

फेंककर भागा है अपना हर झमेला


कल्पना मेरी बिखरने लग गयी है

उग्रता, बेचैन चिंता जग गयी है

आँसुओं में बीतती है रात सारी

जुर्म सा लगने लगा दुनिया का मेला


कौन यह आवाज़ सुनकर आएगा अब?

सांत्वना देकर मुझे समझायेगा अब

कोई वैसा क्यों नहीं लगता सहारा?

बोझ सा ऊपर पड़ा जीवन का खेला


शांत रहना चाहता हूँ पर क्या करूँ?

निःशब्द चलना चाहता हूँ क्या करूँ ?

मौन शब्दों से अधिक कहने लगा है

खो रहा है कहीं पृथ्वी का सवेरा



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