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Prem chandra Tiwari

Tragedy

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Prem chandra Tiwari

Tragedy

पिताजी की यादें

पिताजी की यादें

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दर्द बहुत होता है पिताहीन होकर

भटक रहे हैं जैसे दिशाहीन होकर


जब भी संकट आया हाथ बढ़ाया था

मेरे हर दुःख को तत्काल उठाया था


मित्र, संगिनी, रिश्ते - नाते भरे रहें

पिता नहीं हो सकते, ये दुःख किसे कहें?


अब सच में संसार अधूरा लगता है

एक - एक पल साथ बमुश्किल चलता है


सुबहो शाम ये तनहाई तड़पाती है

प्यार - दुलार आपका याद दिलाती है


मुझे आपकी हर बात याद आती है

दिल को विह्वल मन भारी कर जाती है


कहाँ मिलेगी उन हाथों की छाया अब?

कैसे जी पायेंगे बिना आपके सब?


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