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Swati Grover

Drama Inspirational

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Swati Grover

Drama Inspirational

मैं क्यों लिखती हूँ

मैं क्यों लिखती हूँ

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बारिशों की बूँदें मुझे छूती है

कानों में कुछ कह जाती है

प्रकृति अंतर्मन को भिगोती है

जब अपनी ही आँख के पानी से रिसती हूँ

तब कलम पकड़ती हूँ।


किसी ख्वाब को ले संजीदा होती हूँ

टूटने पर खुद से शरमिंदा होती हूँ

शब्दभेदी बाण हृदय को आहत करते हैं

फिर अपने मर्म की चोट से

उभरे लहू को कागज़ पर उड़ेलती हूँ 

तब ऐसे दिल के ज़ख्मों पर मरहम करती हूँ।


माज़ी को वर्तमान से जोड़ते है

मुस्तकबिल के बारे में हद से ज़्यादा सोचते हैं

ऐसा क्यों हुआ ?

इन सवालों से परेशां होती हूँ

बेचैनी में चैन खोजती हूँ

जीवन-रूपी वर्ग पहेली को

तब अपने ही लिखे काव्य से सुलझाती हूँ


सच तो यह है

अपनी ही ख़ामोशी में कैद है

लफ्ज़ से परिंदे को 

हालातों के पिंजरे से

आज़ाद करना चाहती हूँ

निराशा की रात से जागकर

नई उम्मीद की उषा करना चाहती हूँ

तब लिखती हूँ

हाँ ! तब लिखती हूँ!!!!!!!!


  


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