नारी
नारी
मैं क्यों डरो ?
क्योंकि में नारी हूँ
उस पुरुष की तरह
मेरे पास भी,
दो हाथ, दो पैर
सब बराबर ही तो है
या फ़िर दुनिया को लगता है
मेरे पास खोने के लिए बहुत कुछ है
और उसके पास छीनने के लिए बहुत कुछ
तो कोई ये न भूले
सीता का संस्कार हूँ मैं
रावण का संहार हूँ मैं
जो कुरुक्षेत्र में घुटनों के बल गिरा पड़ा
वहीं द्रौपदी का प्रतिकार हूँ मैं
जो मनुष्य के पापों का उद्धार करती
उसी भागीरथ की पुकार हूँ मैं,
जिसके बुलावे पर तुम पहाड़ चढ़-चढ़ आते हों
वहीं दुर्गा, तुम्हारी पालनहार माँ हूँ मैं
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर की स्वामिनी नहीं,
कलयुग मैं भी एक अवतार हूँ मैं
विधवाओं का जीवन सँवारने वाली
पहली पंडिता रमाबाई बनी
स्त्री शिक्षा को शुरू करने के लिए
पत्थर भी खाए, तिरस्कार झेला
फ़िर भी हिम्मत न हारी
न हुई दुःखी न समझा ख़ुद को अकेला
मैं पहली ज्योतिबा फुले और अहिल्या बन
ऐसी नारी शिक्षा का अधिकार हूँ मैं
वीर राणा प्रताप, चौहान की तरह
तलवार, बरछी खिलौने थे
रण में फिरंगियों के वार भी झेले थे
मातृभूमि के लिए शहादत
देने के लिए आज भी तैयार हूँ, मैं
क्यों मेरे जन्म पर उदासी है
मैं वो जीजाबाई, जिसने पैदा किये शिवाजी है
अंतरिक्ष में जाती तुम्हारी पहली कल्पना हूँ
मैं बल्ला घुमाती मिथाली हूँ
स्वर कोकिला की आवाज़ में लता निराली हूँ
पहली फाइटर पायलट बनी अवनि हूँ
हर राग में बसी रागिनी हूँ
बात बराबरी की नहीं है,
बल्कि बात बहुत
इससे भी ज़्यादा ऊँची है
मैं नारी हर जगह विचरण है
पुरुष संग प्रकृति का है बसेरा
नित्य नए कीर्तिमान बनाती हूँ
तभी तो हर तरह से समर्थ कहलाती हूँ
मेरा आत्मविश्वास, मेरा सम्मान
यही मेरा शृंगार है,
इसलिए मुझे मत रोको,मत टोको
चाहो तो संग मेरे पैर धरो
मैं अबला नहीं, न बेचारी हूँ
नर मुझसे से है
और में गर्व से कहलाती
नारी हूँ,
हाँ नारी हूँI