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Swati Grover

Others

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Swati Grover

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नया साल

नया साल

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बेसकूनी और बेज़ारी इस गुज़रे वक़्त की कहानी है

अब इस नए साल से क्या उम्मीद लगानी है

 जनवरी-फ़रवरी बीते कमाल 

कुछ लतीफे होठों को हिलाते रहे

हंसा-हंसा कर गालों को गुदगुदाते रहे

होली के रंगों ने रंगा हमे 

कुछ ने तो छला हमे 

अनमना मार्च-अप्रैल करता रहा अरमानो को दरकिनार

कितनी ख्वाहिशो ने दम तोड़ा , कितने सपनो ने मुँह मोड़ा

कुछ ख़ुशी के पल मिलकर भी न मिले

पर हाँ कितने गम जबरदस्ती हमसे गले मिले

मई और जून की गर्मी बड़ी प्रचंड थी

मन के मरूस्थल पर बैठी उदासी महा उद्दंड थी

हाय! यह कैसा सावन आया

धरती की प्यास तो ठीक से बुझा न पाया

 जो बरसा जुलाई-अगस्त में वो कतरा-कतरा मेरी आंखों का पानी हैं

अजमाइशो के पाठ पढ़ाए गए

मुश्किलों के सबक याद कराये गए

आईने से नहीं चेहरे से धूल हटाई 

सितम्बर-अक्टूबर ने बड़ी बेदर्दी से यह बात समझाई

ज़िंदगी ने शायद अब भी कोई नयी किताब पढ़ानी है

नवंबर मैं कोई साथ छूटा

दिसंबर का महीना बड़ा सर्द था

क्या पता सर्द था, जर्द था, या दर्द था

जो सामने है वो आज है, कल को तो छोड़ना है

गाडी के स्टेशनों को तो पीछे ही छूटना है

यादो की खिड़कियाँ बंद कर दो

संघर्ष के नए प्लेटफार्म पर एक और ट्रैन आनी है

 अब इस नए साल से क्या उम्मीद लगानी है।


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